Last modified on 24 अगस्त 2017, at 15:39

म्वाछन का कीन्हें सफाचट्ट / रमई काका

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 24 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमई काका |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> म्वा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

म्वाछन का कीन्हें सफाचट्ट,
मुँह पौडर औ सिर केस बड़े।
तहमद पहिरे कम्बल ओढ़े,
बाबू जी याकै रहैं खड़े।।
  
हम कहा मेम साहेब सलाम,
उई बोले चुप बे डैमफूल।
‘मैं मेम नहीं हूँ साहेब हूँ‘,
हम कहा फिरिउ ध्वाखा होइगा।।