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धँसि गयन दुकानैं दीख जहाँ/ रमई काका
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धँसि गयन दुकानैं दीख जहाँ,
मेहरेऊ याकै रहैं खड़ी।
मुँहु पौडर पोते उजर–उजर,
औ पहिरे सारी सुघर बड़ी।।
हम जाना मूरति माटी कै,
सो सारी पर जब हाथ धरा।
उइ झझकि भकुरि खउख्वाय उठीं,
हम कहा फिरिव ध्वाखा होइगा।।