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तीन कविताएँ / वेरा पावलोवा / मणिमोहन मेहता
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एक
मैंने तुम्हारा दिल तोड़ा
अब नंगे पाँव
चलती हूँ
नुकीले टुकड़ों पर।
दो
यह जो शब्द है
’हाँ‘
इतना छोटा क्यों है?
इसे तो होना चाहिए
सबसे लंबा,
सबसे कठोर,
ताकि एक झटके में
निर्णय न ले सकें
इसे कहने में,
ताकि इस पर विचार करते हुए
आप रुक जाएँ
इसे कहते-कहते बीच में।
तीन
प्रेम के बाद
अस्त व्यस्त,
“देखो
कमरे की छत
हर तरफ़ सितारों से भर चुकी है
और सम्भव है
इनमें से किसी एक में
जीवन हो...
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणिमोहन मेहता