भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुआ / अर्चना कुमारी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 26 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब हूक उठती है
तब मलाल उगता है
कि खंजरों की नोंक पर
जिस जिस्म को रखा गया
वही रुह की अलमस्तियों में
आजाद तन्हा फिरता रहा
खेल-खेल में चोट जो लगीं
तो उम्र सारी लग गयी
रेशा-रेशा सांस में चुभन हुई
कि उम्र सारी चुभ गयी
राह एक चलती रही
उम्मीद सी बुनती रही
होंठों पर मुस्कान बन
उम्र भर खिलती रही
उठे जब हाथ
दिल खुदा-खुदा हुआ
नजर झुकी सजदे में
शŽद भर दुआ-दुआ....