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जिजीविषा / अर्चना कुमारी

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हर दिन चौकस
और हर पल आश्वस्त रहती हूं
अपनी मृत्यु को लेकर
पिछली कई आत्महत्यायों के बाद।

किसी का जाना सुनिश्चित करना
आने से पूर्व ही
पथ को आश्वस्त करता है
आगत पदचाप की विदा के लिए।

अवसाद के आहत स्वरों का
भाव स्यन्दन जटिल
दु:ख की एकनिष्ठता में
झर चुकी पलकों से देखती है वेदना
सम्वेदना का मूक होना
मृत ˆवचा पर टिकता नहीं स्पर्श
बधिर स्पंदनों का।

अभिसार के वाचक पलों का
व्याकरण भी क्षीण है
मरीचिका की वीथियों में
भ्रमण, अर्थ जीवन का हुआ
सत्य, मृत्यु का अटल
किसने अधरों से सुना?

नवजात भय की आहटों से
जिजीविषा दृढ़ हुई
तरल नयन के अंतस में
मन-संरचना ठोस हुई।