भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम दिलों में निवास करते हैं / देवी नागरानी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:23, 18 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी }} [[Category...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल को हम कब उदास करते हैं
आज भी उनकी आस करते हैं.

हमको ढूँढो नही मकानों में
हम दिलों में निवास करते हैं.

पहले ख़ुद ही उदास रहते थे
अब वो सबको उदास करते हैं.

चढ़के काँधों पे हो गए ऊँचे
इस तरह भी विकास करते हैं.

इक्तिफा़कन निगाह उट्ठी थी
लोग क्या क्या क़यास करते हैं.