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बात हमने किसी को बताई नहीं / कल्पना 'मनोरमा'

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बात हमने किसी को बताई नहीं।
पर हमें रात भर नींद आई नहीं।

आँख झपकी नहीं एक पल के लिए,
चाह की लौ किसी से लगाई नहीं।

चाँदनी आ गई ले कलश ओस के
क्या हुआ फिर, धरा क्यों नहाई नहीं।

ले गया लूटकर मन के सुख चैन वो
जबकि साँसों ने की थी सगाई नहीं।

जब सुबह दौड़ती साँझ के नेह में
प्रीति की रीत जग को सुहाई नहीं।

डूब जाता है मन क्यों, यूँ अनुराग में,
सेज सपनों की दिल ने सजाई नहीं।

कल्प बीते चकाचौध में इस कदर
आईना ने भी सूरत दिखाई नहीं।