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अम्मा / कल्पना 'मनोरमा'

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राई के दाने पर सरसों
चली चढ़ाने अम्मा
सदी पुरानी फटी ढोलकी
लगी बजाने अम्मा।

भावुक धड़कन कोरे सपने
भरकर लाई मन में
किरच –किरच बंट गई सभी में
देखा न दर्पण में
भोली मुस्कानों को किस्से
लगी सुनाने अम्मा।

झुकी भित्तियों को अपनाकर
अल्हड़पन बिसराया
लिखी इबारत सबके मन की
खुद को खूब भुलाया
इच्छाओं के महल दुमहले
लगी बनाने अम्मा।

चूल्हे में रोटी –सी सिकती
जलती चौरे तुलसी
तुलसी दास बने हर पलछिन
बन जाती वह हुलसी
गरम रेत में निर्मल सरिता
लगी बहाने अम्मा।

रेशम बदले मारकीन में
तनिक नहीं घबराती
अवसादों में घिरने पर भी
गीत प्रेम के गाती
कीचड़ देखा फूल कमल के
लगी खिलाने अम्मा।