भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग / विजेन्द्र अनिल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेन्द्र अनिल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अतीत को
वर्तमान से जोड़े
भविष्य हमारा है
हवा को
पूरब की ओर मोड़े
भेड़िए मान्द से
बाहर निकल रहे हैं
मेमनों की हिफ़ाजत में
आओ
रतजगा करें
अन्धेरे को चीरने के लिए
रोशनी ज़रूरी है
और रोशनी के लिए
आग — सिर्फ़ आग।