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रेडियम का गीत / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
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इतने भी होते हैं
अन्धेरों के जेरे (हौंसले)
कि चलते रात के सफ़र लमेरे (लम्बे)
साँस दरियों के टूट जाते हैं।
रेडियम पर कभी नहीं
कभी भी नहीं
गीत अपना तोड़ता
दहलीज़ से मायूसियों को मोड़ता
अन्धेरा अपना रंग
और गहरा करता है
ज़र्रा-ज़र्रा कालिख़ से भरता है
गुस्से में उबलते कड़ाहे दिल पर डालता है
रेडियम के गीत भीतर सोज आता है
किसी सूरज को किए प्रणाम बिना
रेडियम न गीत अपना तोड़ता
दहलीज़ से मायूसियों को मोड़ता