अब ना करबि हम गुलमिया तोहार / विजेन्द्र अनिल
अब ना करबि हम गुलमिया तोहार,
भले भेजs जेहलिया हो।
सगरे छिटाइल बा हमरे कमीनी
हमहीं कमाईं, हमहिं अब कीनी,
उड़ल हवा में झोपड़िया हमार,
हँसे तोहरो महलिया हो।
हमहीं निकालीलां सोना आ चानी,
हमरे पसेनवा प टिकल रजधानी,
हम भइनी गंगा के ढहल कगार,
करत तोहरो टहलिया हो।
तोहरा लइकवा के मोटर आ गाड़ी
हमरा लइकवा के खाँची-कुदारी,
अब ना सहबि हम जुलुमवा तोहार,
सुनs हमरो कहलिया हो।
पुलिस मलेटरी के गाँवे बोलाके
दागेलs गोली तू सभके पोल्हा के,
कबले चली ई बनुकिया तोहार,
लहके लागल गलिया हो।
देखs सिवाना के फेंड़, सुगबुगाइल
पुरुब में सूरूज के लाली छितराइल
गंगा अस उमड़ल बा जनता के धार,
डूबि जाई महलिया हो।
अबना करबि हम गुलमिया तोहार,
भले भेजs जेहलिया हो
रचनाकाल : 07.11.1981