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भोर / मनीष कुमार गुंज

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पहिलॉे पहली कामोॅ मेॅ सुरसूरी लागथौंन
आपने से नै करभो ते मजदूरी लोगथौंन।

दुनियाँ मेॅ सुन्दर से सुन्दर दुनियाँ छै
जे भीतर मेॅ वास करै उ नूरी लोगथौंन।

छोटॉे साधन मेॅ छोटोॅ परिवार बनाबोॅ
दर्जन भर बढ़थौन ते कत्ते कूरी लोगथौंन।

मौका छै मजगूत करॉे आपनॉे हाँथो कॅेे
तनठो गलती पेट-पीठ पर छूरी लागथौंन।

औवल बोली चीनी-शक्कर सॅे भी मीट्ठो
उटपुटंगा बात कभी मजबूरी लागथौंन।

स्वार्थ लोभ परिवार बाद ओझराबै बाला
जे जतना भीरी मेॅ ओतने दूरी लागथौंन।