भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन-4 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:14, 18 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

34.
छै नी ऊ सच्चा
जे जत्तेॅ गिरलोॅ छै
वहेॅ रे अच्छा।

35.
छेकै ऊ मित्र
दिलोॅ में जेकरोॅ रे
उतरै चित्र।

36.
छेकै दर्शन
जे करै छै दिलोॅ में
प्रभु चिन्तन।

37.
यादोॅ के बात
विरह-मिलन के
छेकै बारात।

38.
कैसनोॅ धोखा
अपनोॅ भी भागै छै
पाय केॅ मौका।

39.
ऊ एहसान
मानव के छेकै नी
ई पहचान।

40.
करोॅ कल्याण
भला करतौं तोरोॅ
ऊ भगवान।

41.
छेकै अधर्म
आदमी के संगे जे
करै कुकर्म।

42.
बहेॅ दुश्मन
काँटे रंग जेकरोॅ
छै चितवन।

43.
छेकै ई देश
करै छै सिया चोरी
साधु के वेश।

44.
करोॅ यकीन
जानो केॅ लै छै देखोॅ
जे छै हसीन।

45.
छेकै शैतान
भूलै छै केकरोॅ जे
ऊ एहसान।