भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विचार-1 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 18 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
कैन्होॅ संसार
जीवन-मरण के
मूल आधार।

2.
अजबे खेल
आदमी में नै मेल
खाली नै जेल।

3.
कैन्होॅ आदत
चोरी करै लेली रे
करै इबादतं

4.
अजबे सौदा
परमारथ कम
स्वारथ ज्यादा।

5.
ऊ छेकै चोर
जेकरा नै ममता
नै आँखी लोर।

6.
छै नी ऊ चालू
घाटोॅ के जौनें देखोॅ
बेचै छै बालू।

8.
की रंग मान
पैसा लैकेॅ के नाय
दै छै सम्मान।

9.
छेकै ई फर्ज
आपसी लेन-देन
समझोॅ कर्ज।

10.
करोॅ नै भूल
आपसी लेन-देन
करोॅ वसूल।

11.
अजबे योग
भ्रष्टंे करै छै रोज
माखन भोग।

12.
होतै ऊ चंगा
बेचिये केॅ जे रोजे
खैतै तिरंगा।