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संकल्प (2) / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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मैं चीख रहा हूँ युगों से
इतिहास के पन्नों पर
बियाबान जंगलों में
संसद से सड़क तक
परन्तु मैं
अपनी आवाज के उत्तर में
सिर्फ अपनी आवाज ही
सुन पा रहा हूँ
असम्भव है मूल्यांकन मेरे उत्पीड़न का
लेकिन मैं इससे घवड़ाता नहीं
मैं अकेला ही युग के शकुनियों से
लड़ता रहूँगा अन्तिम सांस तक