भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्थिति / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:43, 5 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मीरा
मैंने तुमसे
इतना ही तो कहा था
कि इधर देखो
ये बेली के पौधे
जिसे तुमने लगाये थे
किस तरह फूलों से
लद-लद गये हैं
आओ, हम दोनों रात भर
इन फूलों को प्यार करें।
लेकिन
न जाने क्यों
क्या समझ कर
तुम
उदास शाम के अंधकार सी
लगने लगी हो
मैं
इन खिले फूलों
और
तुम्हारे उदास चेहरे के बीच
हथौड़े और पत्थर के मध्य
चूर होते
कोयले की तरह
हो रहा हूँ।