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सच पूछो तो / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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कौन कहता है
तुम गद्दार हो
संसद में बैठकर
सड़क का भविष्य
बनाने वाले देवताओ !
तुम्हें यह कहने की हिम्मत भी कौन करेगा ?
गद्दार है यह सड़क
जो चुपचाप सहती है
कभी कुछ नहीं बोलती है
पीड़ा से आहें भरती है
और सच पूछो तो
गद्दार हूँ मैं
जो जाग्रत ज्वालामुखी की तरह
धधकने लगा हूँ
कि भरने लगा हूँ
उन बेवश आखों में
आबाज उठाने की भाषा
यह जानकर भी
कि मेरा भी नाम
लिख लिया जायगा
गद्दारों की सूची में।