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कैसे मनाये / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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जले दिल को बोलो, और कितना जलायें
दिवाली इस बार की, कहो कैसे मनायें ?
कहो मेरे बाबा,
कहो मेरे भैया,
बोल री बहन
सताये हुए को, और कितना सतायें ?
दिवाली इस बार की, कहो कैसे मनायें ?
हर तरफ शोषण
लूट, व्याभिचार, अनाचार का नर्Ÿान,
नैतिक मूल्यों से हीन जन-जन
कहते हैं देवगण महलों को सजायें।
दिवाली इस बार की, कहो कैसे मनायें ?
मजदूर किसानों का देश, और यही मरा,
अभाव मँहगाई से,
शासन की बेवफाई से,
काली कमाई से,
हर प्रांत जल रहा है,
कि देश जल रहा है
कि हर किसी का प्राण जल रहा है
दुःखी दिल को बोलो, क्या कहकर समझायें ?