भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द की दहलीज से / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 5 अक्टूबर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन व्यकुल तेरे बिना
कुछ ऐसा,
क्या कहुं प्रिये ?
बिच्छू के काटे जैसा
-
तेरे जाने के बाद का समय
कुछ ऐसे ही बीता,
जैसे बकरे की बलि के लिए
तैयार कसाई
और उसके हाथ में काता।
-
करेत काटे सा दिन कटा
रातें कटी
जैसे बिजली का करंट,
दर्द टीसता रहा
जैसे किसी निरपराध पर
पुलिश का वारंट।
-
किसने छिरयाया है ?
तुम्हारी साँवरी देह को
आकाश के कोने-कोने में
और मैं क्यों ?
टकटकी बाँधे देखने लगा हूँ
लगातार