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दर्द की दहलीज से / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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मन व्यकुल तेरे बिना
कुछ ऐसा,
क्या कहुं प्रिये ?
बिच्छू के काटे जैसा
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तेरे जाने के बाद का समय
कुछ ऐसे ही बीता,
जैसे बकरे की बलि के लिए
तैयार कसाई
और उसके हाथ में काता।
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करेत काटे सा दिन कटा
रातें कटी
जैसे बिजली का करंट,
दर्द टीसता रहा
जैसे किसी निरपराध पर
पुलिश का वारंट।
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किसने छिरयाया है ?
तुम्हारी साँवरी देह को
आकाश के कोने-कोने में
और मैं क्यों ?
टकटकी बाँधे देखने लगा हूँ
लगातार