माफ़ीनामा / दिनेश श्रीवास्तव
मेरे बच्चे
हो सके तो हमें माफ़ कर दे ना
तुम्हारे दादा लड़े थे
उन्होंने लाठियां खायीं
जेल गए कि
मुल्क आज़ाद हो
और मुल्क आज़ाद हुआ
पर मैं
न तो आज़ादी पाने के लिए लड़ा था
और न ही आजादी बचाने के लिए लड़ पाया
जब लोगों ने नफ़रत के बीज बोये
मैंने आँखें बंद कर लीं
जब लोगों ने क्रूर अट्ठहास किये
मैंने कान बंद कर लिए
और जब लोगों ने मेरी आजादी छीनी
मैंने जबान पर ताले डाल लिए
नतीजा तुम भुगतोगे मेरे बच्चे
मेरी यह कायरता तुम्हे
दर दर भटकाएगी
मेरी यह भीरुता तुम्हे
हर दिन रुलायेगी
ज़िन्दगी के इस आख़िरी मोड़ पर खड़ा मैं
बस इतना कहूँगा
कि इन भटकनों के बीच
बपौती में मिली त्रासदी झेलते हुए मेरे बच्चे
जब कभी मेरी याद आये
तो चाहे शर्म से सर नीचा कर लेना
पर हो सके तो
हमें माफ़ कर देना
तुमने मेरा रंग पाया है
तुमने मेरा रूप पाया है
पर मेरी कायरता को
अपने पास न भटकने देना
मेरे बच्चे उससे लड़ना
उससे लड़ना, नहीं तो मेरे बच्चे
मेरी तरह तुम भी रोज रोज मरोगे
मेरी तरह तुम भी ऐसे ही किसी
मोड पर अकेले
डरे सहमे खड़े मिलोगे
जिन्दगी के इस आख़िरी बीरान मोड़ पर खडा
तुम्हारा यह कायर पिता
तुमसे यह भीख मांगता है
तुम्हारी आज़ादी की शुरुआत
इसी लड़ाई से होगी मेरे बच्चे.
मेरे बच्चे तुम कायर मत बनना
और हो सके तो मेरे बच्चे
हमें माफ़ कर देना
सुना है माफ़ करने से हिम्मत बढ़ती है.