भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कल के समाचार / दिनेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:55, 13 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कलम उठती नहीं.
मर गए भाव सब.
विष सारा बुझ गया
बार बार उफन कर.
राख के ढेर से
हम रहे धरे.
बदबू भरी हवायें
शाम को फिर आयेंगी.
बिखेर देंगी हमें,
कीचड़ से बजबजाती राहों पर,
सीलन से भरी कोठरियों में.
पथराई, राख सी बुझी आँखें
इस उड़ती राख को
चुटकियों में समेट लेंगी.
पुड़ियों में बाँध
सुबह बर्तन घिस आयेंगी