शाम की चाय के साथ
घरेलू औरतें उबालती है अपनी थकान
फिर कितने सलीके खुद को समेट कर
करीने से माहताब की रोशनी में ढ़ल आती है
कि कोई यकायक देखें तो कह उठे
कितनी आफताबी हो तुम,
पर उसका घरेलू आदमी इसके विपरीत ये कहता है
कि तुम दिन भर करती क्या हो !
शाम की चाय के साथ
घरेलू औरतें उबालती है अपनी थकान
फिर कितने सलीके खुद को समेट कर
करीने से माहताब की रोशनी में ढ़ल आती है
कि कोई यकायक देखें तो कह उठे
कितनी आफताबी हो तुम,
पर उसका घरेलू आदमी इसके विपरीत ये कहता है
कि तुम दिन भर करती क्या हो !