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गर्म हवाएँ / ब्रजमोहन

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चारों तरफ़ बुनें बैठी हैं
गर्म हवाएँ ताना-बाना
कोयल छोड़ सुरीला गाना...

गा सकती है
तो मैं केवल आज़ादी के गीत सुनूँगा
वरना सबसे पहले
धड़ से गरदन तेरी अलग करूँगा

तूने सीखे गीत सुरीले, तू क्या जाने क्या होता है
भूख माँगती है जब खाना...

मन बहलाने
औ’ फुसलाने का मौसम अब चला गया है
सुर के छल-कपटों में
जाने कितना जीवन छला गया है
आग लगी है मन में ऐसी — धू-धू करके जलते सपने
अपना ही घर है बेगाना...