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खाने को न देंगे / ब्रजमोहन
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खाने को न रोटी देंगे कृष्ण-कन्हैया
ज़ालिमों से लड़ने को एक हो जा रे भैया
तेरी ही कमाई पे खड़े ये कारख़ाने
तुझको ही मिलते न पेट-भर दाने
गिद्धों के जैसा तुझसे मालिक का रवैया
ख़ून चूस-चूस के जो देते हैं मजूरी
हम से न कम होगी मालिकों की दूरी
अपनी नैया के हम ही खिवैया
अपने दिलों में सदा उनके ही गीत
चाहते बदलना जो दुनिया की रीत
सीने में हमारे ज़िन्दा किश्ता-भूमैया