मैंने लिखी क्लिष्ठ हिंदी में
कठिन प्रेम कविताएँ,
मेरी जानिब ख़ालिस उर्दू की,
'तुम' नफ़ासत भरी 'ग़ज़ल' हो गयी
थक कर सिमट गया मुझमे
पोर-पोर दुखता मटमैला दिन,
सुख सा निखरी-बिखरी मुझमे
'तुम' गमकती 'संदल' हो गयी
साँझ ढल कर कंटीली हुई
मैं खुरदुरा घवाहिल ढहा
फाहा-फाहा, रोआं-रोआं
'तुम' मेरा 'मलमल' हो गयी
मैं उभरा जब भी, पश्ताचाप संताप भाप सा
'तुम' उतरी मेरी आँखों में, 'गंगाजल' हो गयी !!