भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आशावादी / नाज़िम हिक़मत
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 19 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब वह छोटा था तो उसने कभी नहीं नोचे मक्खियों के पर,
न ही कभी टीन के डिब्बे बांधे बिल्लियों की पूंछ से,
माचिस की डिब्बियों में कभी नहीं बंद किया कीड़ों को,
न ही नष्ट किया कभी चींटियों की बांबी को.
वह बड़ा हुआ तो
ये सारी चीजें उसके साथ की गयीं.
जब वह मृत्युशय्या पर था
तो उसने मुझसे एक कविता सुनाने के लिए कहा,
सूरज और समुद्र के बारे में,
परमाणु रिएक्टरों और सेटलाइटों के बारे में,
मानव जाति की महानतम उपलब्धियों के बारे में.
6 दिसंबर 1958
बाकू
अनुवाद : मनोज पटेल