Last modified on 20 अक्टूबर 2017, at 13:01

तुम जब जानना चाहते हो / सुरेश चंद्रा

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 20 अक्टूबर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम जब
जानना चाहते हो
मेरी उम्र की ऊँचाई
पूछ बैठते हो
किस तरह, इतने बसंत ???
मैं नहीं दिखा पाता तुम्हें
मेरे अंदर
पतझड़ का झड़का
किसी भी पत्ते का संहार

तुम जब
जानना चाहते हो
मेरे रहस्यों की गहराई
गिनते हो मेरे अवसाद
सुनने से अधिक बुनते हो प्रमाद
मैं नहीं जता सकता तुम्हें
अपनी जड़ों की जिजीविषा पर
एक भी प्रहार

तुम जब
जानना चाहते हो
मेरी परिधि, मेरे वृत का आकार
गणना करते हो, त्रिज्या का आधार
मैं मोल कर औपचारिकता, शिष्टाचार
कहता हूँ
तुम्हारी धारणाओं के अनुपात मे, सरकार
तुम्हारी जिह्वा के स्वादानुसार.