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वो खिड़की, खुली रखना / सुरेश चंद्रा
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वो खिड़की, खुली रखना
जहाँ से आती हो, ताज़ी हवा
थोड़ी सी चाँदनी और
आ सके गर, एक पुरानी याद
एक गमला सिरहाने रखना
बो देना कुछ धुंधली आहटें
आधा नाखून, तुम्हारी धूप
आधा क़तरा नमी मेरी
किसी बेचैन सांस में
सिसकी जो उग आए
बहा लेना आँखों से, चंद मुस्कुराहटें
खनक उनकी, भर लेना गुल्लक में
एक दिन, बेचैनी तोड़ कर
नयी सी दुनिया खरीद लेना.