भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो दिन लौटा भी लाते / सुरेश चंद्रा
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:25, 20 अक्टूबर 2017 का अवतरण
वो दिन
लौटा भी लाते
मीठे लफ़्ज़ों मे गूँथी कहानियाँ
जब, निगल जाती थी आँखें
शहज़ादों परियों की कहानियाँ
स्वप्निल आसमान
लोबान सी महकती ज़मी
कौंधते जुगनू
एक सच गढ़ती कहानियाँ
जिनमे हक़ीक़त की बू तक नहीं थी
आँखों ने फिर पढ़ी
उम्र की दहलीज़ पर
कई-कई आँखें
इन दिनों
आँखें आँखों से कतराने लगी हैं
आँखें उगल देना चाहती हैं एक समंदर
क़िस्से, कहानियाँ, लफ्ज़ सारे
वो दिन
लौटा भी लाते.