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मुंबई : कुछ कविताएँ-5 / सुधीर सक्सेना

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वे सिर्फ़ समुद्र में नहीं हैं :


बहुधा वे

नारियल पानी पीने चली आती हैं

पुलिन पर,

कभी वे नज़र आती हैं लोकल के किसी डिब्बे में,

कभी खिलखिलाती हैं रुपहले पर्दे पर,

कभी नज़र आती हैं डोंगियों में सवार,


कभी वे गोता लगा जाती हैं प्याले में

और शराब से भीगी हुई निकलती हैं प्याले से


रात जब बजता है गजर

दूधिया रोशनी फिसलती है

उनकी सलोनी चिकनी देह पर।