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मुंबई : कुछ कविताएँ-6 / सुधीर सक्सेना

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चेहरे ही चेहरे हैं यहाँ

कि एक-एक मिनट भी निहारो

तो सैकड़ों घंटॊं का वक़्त चाहिए,


एक-एक चेहरे को छुओ

तो उंगलियों को सैकड़ों घंटॊं की फुर्सत चाहिए,

एक-एक चेहरे को लिखो

तो मीलो-मील लम्बा काग़ज़ चाहिए


इस शहर में इतनी फुर्सत कहाँ है,

कामरेड!


वह रहा वहाँ

लहरों के छोर पर मचलता

मेरी प्रिया का बालिश्त भर गोल चेहरा


मैं चला

तुम लिखते रहो पुलिन पर बैठ

बेबस तलाश की कथा।