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मुंबई : कुछ कविताएँ-1 / सुधीर सक्सेना

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एक शहर

बिला नागा रोज़

इंतज़ार करता है

लोकल का


एक शहर

लगभग दौड़ता हुआ

चढ़ता है लोकल में


एक शहर

भागता हुआ सा

उतरता है लोकल से


एक शहर आख़िरकार

समा जाता है

पहियों पर सवार एक बड़े शहर में।