भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ईमान की बात / रामनरेश पाठक
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 23 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक वेश्या ने
अपने बैठके के बुकशेल्फ में
सजा कर रख लिया है
साहित्य, दर्शन, कला
संस्कृति, इतिहास, विज्ञान
सिद्धांत, विचार, व्यवहार
सभ्यता और मिथक
मैं अपने कमरे में
निस्तब्ध या विश्रब्ध
भर्तृहरि के शब्दों में
गा रहा हूँ--
'यां चिन्तयामि सततं...'