संवाद / रामनरेश पाठक
एक सुनसान निर्जन विश्व
एक विशाल मरुस्थल
और अनेक ज्वालामुखी
जहाँ कोई वायुमंडल नहीं है
कोई बादल, कोई तूफ़ान
या मौसम नहीं है
जहाँ कोई पेड़, घास, फूल, पशु
और नखलिस्तान नहीं है
जहां रात और दिन
बेहद लम्बे और उदास होते हैं
जब सूरज बहुत गरम होता है
तुम इतनी गरम हो जाती हो
कि वहाँ पानी उबाला जा सकता है
और यदि
तुम्हारी सर्दी से बचा नहीं जाए
तो लोग जैम जा सकते हैं
तुम्हारे कम्पन और
माध्यम वेग वाले सौर-तूफ़ान
तुम्हारे चुम्बकीय क्षेत्र, अयनमंडल,
और तुम्हारी भीतरी धडकनें
तुम्हारे तापप्रवाह
तुम्हारे अनगिन बहुरंगी मंच
तुम्हारे आकर्षण और महत्त्व
कार्यालय या पथ हैं और
वे घर या द्वार बन जा सकते हैं,
मेरे पास कोई
ल्यूनर ऑर्बिटर नहीं है
जो तुम्हारे चित्र भेज सकें
या कोई यान या यात्री भी नहीं
है मेरा जो कोई
संवाद या उपकरण
तुम तक पहुँचाये
या फिर चित्र या सूचनाएँ
मेरे पास भेज सके
कभी-कभी बहुत दूर
जो कुछ रंग
दिखलाई पड़ जाते हैं
सुमेरु प्रभाएँ दीख पड़ती हैं
वहाँ कुछ भावी आयाम हैं
उन्मुक्त और अनंत
मैं निर्भर हूँ उनपर
अलार्म बेल की तरह
7'0 क्लॉक ब्लेड की तरह
या फिर
दस्तरखान की तरह