भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यूँ निचोड़ा वक़्त ने / जय चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय चक्रवर्ती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यूँ निचोड़ा वक़्त ने
तन हुआ सूखी झील जैसा
सुबह से शाम तक
बंटते रहे
हर रोज रिश्तों मे
कभी इस पर
कभी उस पर हुए हम
खर्च किस्तों मे
घर रहा फरमाइशों की,
जिदों की तहसील जैसा
लिए ईमान की पोथी
भटकते
हम फिरे दर-दर
मिली हर पाठशाला मे
ये पुस्तक
कोर्स से बाहर
मिला अक्सर दोस्तों का प्यार
‘मिड-डे-मील’ जैसा
उगे वन नागफनियों के
जहाँ
बोया गुलाबों को
सजाते तो कहाँ
आखिर
सजाते अपने ख्वाबों को!
फूल जैसा प्रश्न,
उत्तर जंग-खाई कील जैसा