भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनो सरला / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:35, 30 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुनो, सरला
गीत यह अंतिम हमारा
जब हवाएँ आएँ कल
उनको सुनाना
जो सुनाया था हमें पहली दफ़ा
वह गान गाना
याद करना
पर्व जो हमने रचा था
कल कुँआरा
याद कर हमको
कभी आहें न भरना
आयें पतझर
उन्हें भी हँसकर, सखी
मधुमास करना
यही सच है
मिलेंगे अगले जनम में
हम दुबारा
नेह का हमने बनाया
एक है घर
जा रहा हूँ मैं तुम्हारी
छुवन मीठी साथ लेकर
पल मिले
हमको अनूठे -
कोई मीठा-कोई खारा