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प्राणदण्ड / निज़र सरतावी / अनिल जनविजय

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वे आते हैं
इस इलाके से रोज़ गुज़रने वाले
अपने पुराने घिसे-पिटे ट्रक में बैठकर
भारी काले जूतों से
धरती को रौंदते हुए

उनके सिर ढके होते हैं
लोहे के टोपों से
जिन पर टीन के सुरक्षा-कवच मढ़े होते हैं
उनके कान ढके होते हैं
और चेहरों पर भी पारदर्शी कवच
भारी सुरक्षा-वर्दियों में छिपे हुए
वे आगे बढ़ते हैं
नपे-तुले क़दम उठाकर

और वहाँ वह अकेली खड़ी है
ख़ूबसूरत लिज़्ज़ब के पेड़ की तरह
बूढ़े हरे किले की तरह
इस गिरोह के सामने

वे उसके आकार की थाह लेते हैं
वे उसे नापते-जोखते हैं
वे देखते हैंउसके तीखे नयन-नक़्श
और उसकी छाती में आरी भोंक देते हैं

रिरियाती है उनकी आरी
चीख़ती-चिल्लाती है
किरकिराती है
जब तक कि चट्टान थरथराने
और काँपने नहीं लगती
भावी विभीषिका के भय से

वे उसे फ़ोड़ते रहते हैं
धसकाते रहते हैं
और उसकी हड्डी-हड्डी
कुचल देते हैं
तोड़ देते हैं
चूर-चूर कर देते हैं उसका दर्प।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय