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आपनोॅ फैसला / बिंदु कुमारी

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तोॅ हाथ भर के हमरोॅ ऐंगना मेॅ
रोपी देलेॅ छेलोॅ तुलसी के पौधा
ऊ रातौं-रात केना पीपर के गाछ होय गेलै
होकरोॅ बड़ोॅ-बड़ोॅ डार दूर-दूर तांय
देखतेॅ-देखतेॅ पसरी गेलै
जेकरा घोॅर नै छेलै, होकरा लेली
ऊ गाछ घोॅर बनी गेलै
आरो कै-एक लोगों लेली आँखी के किरकिरी।
वहेॅ सीनी लोग जेकरा लेली
पीपर के विशालता, बोझ होय गेलोॅ छै
वेॅ काटी रहलोॅ छै डारी केॅ
गिराय रहलोॅ छै पत्ता
डारी केॅ काटतेॅ-काटतेॅ
हमरोॅ ऐंगना तांय पहुँचे सकै छेॅ
यहेॅ सोची केॅ हम्मेॅ पीपर के धड़ोॅ मेॅ
सट्टी गेलोॅ छियै-कि हेकरोॅ जोॅड़ आरो घोॅड़
कटेॅ नै देबै-
आपनोॅ सिर कटै तांय।
पीपर के ऊ गाछ
जेकरा तोॅ हमरोॅ ऐंगना मेॅ लगाय देलेॅ छेलोॅ।