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पियार / राधेश्याम चौधरी
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जिंनगी खुली केॅ जियै छियै।
समय आपनोॅ दै देलेॅ छियै।।
शब्द बनी केॅ पुकारै छियै।
आपनॉे दरद बताय देलेॅ छियै।।
पियार हरदम्मेॅ छुपलोॅ रहै छै।
गुलाब दै केॅ बताय देलेॅ छियै।।
गली-गली मेॅ दिवाना बनी घुमै छियै।
पियार रोॅ सौंगात पहुँचाय देलेॅ छियै।।
तोरा सेॅ नजर हम्मेॅ चोराय नै पार मौं।
अकेल्लोॅ हम्मेॅ आबेॅ नै रहेॅ पार भौं।।
सपना मेॅ तोरा हरेक रात देखौछियौं।
तोरोॅ सब बात भुलय नै पार भौं।।