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एकटा सवाल / माधुरी जायसवाल

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है केन्होॅ विधि के विधार?
सुहागिन के हाथोॅ में
लाल-लाल चूड़ी
आरो विधवा के नाड़ी छै नाँढ़ोॅ।

हुनकोॅ माथा पर
चमकै टिकुलिया,
माथा पर रत-रत लाल
सिनूर।
हिन्नें अभागन के दुनियाँ वीरान छै।
केन्होॅ बेवस्था इ?
केन्होॅ समाज?
हे विद्मत समाज,
तोहीं बतावेॅ
जबेॅ मरदाना मरै छै
तेॅ की-की बार्जन होय छै
हुनका लेॅ?
विधवा केॅ तेॅ उजरोॅ साड़ी
पिन्हावै छोॅ,
ओकरोॅ चूड़ी तोड़वावै छोॅ,
माँगो धुलबावै छोॅ;
बिन्दियो पोछबावै छोॅ
आरो छीनी लै छोॅ ओकरोॅ हँसी;

मतरकि
की-की होय छै उ मरदाना साथें
जेकरोॅ मरी जाय छै कनियााय?
हुनकोॅ की-की छीनी लै छौ तोहें?
हुनकोॅ विधुर होथैं,
की-की दै छोॅ
पहचान-चिन्ह?

कुछवे तेॅ नै।
आखिर हेनोॅ कैन्है;
कैन्हें इ दुरंगी नीति?
हमरोॅ इ सबाल के उत्तर

जब ताँय
इ दुनियाँ सें नै मिलि जाय छै
हम्में घुरी-फिरू मरवै,
घुरी-फिरू जनम लेवै;
यही एक सवाल पुछै लेॅ।
कहिया फुलैतै उ फूल?