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होती कितनी छोटी चींटी / महेश कटारे सुगम

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होती कितनी छोटी चींटी
फिर भी दिन-भर करती पी० टी०

                    हरदम ही चलती रहती है
                    लेकिन कभी नहीं थकती है

आदत है इसकी अलबेली
नहीं निकलती कभी अकेली

                    झुण्ड बनाकर ये आती है
                    दीवारों पर चढ़ जाती है

मीठी-मीठी चीज़ें खाती
कभी किसी को नहीं सताती

                    लेकिन जब अपनी पर आती
                    हाथी को भी मार गिराती

होती कितनी छोटी चींटी...