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गंध का न गाँव पड़े बन्धक / ईश्वर करुण
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गंध का न गाँव पड़े बन्धक
अनुबन्ध बस इतना
रस की सौगंध खाएँ कंटक
सहबंध बस इतना
दंभ का न युद्ध हो ,न सच से कहीं बैर हो
हो प्रसन्न मित्रता दरिद्रता के पैर धो
व्यक्ति हो न व्यक्ति का आखेटक
प्रतिबंध बस इतना
अपनी अपनी अस्मिता की ओर सब सचेत हों
किन्तु राष्ट्र के लिए जो स्वर हो वे समवेत हों
हो विवेक चरण के नियंत्रक
सम बंध बस इतना
कण कण माँ भारती का पूज्य सब को हो सके
मन में दिव्य दृष्टि लिये सृष्टि भार ढो सके
हो सकें दायित्व के निर्वाहक
स्कंध बस इतना