भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गंध का न गाँव पड़े बन्धक / ईश्वर करुण

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 9 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्वर करुण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गंध का न गाँव पड़े बन्धक
अनुबन्ध बस इतना
रस की सौगंध खाएँ कंटक
सहबंध बस इतना

दंभ का न युद्ध हो ,न सच से कहीं बैर हो
हो प्रसन्न मित्रता दरिद्रता के पैर धो
व्यक्ति हो न व्यक्ति का आखेटक
प्रतिबंध बस इतना

अपनी अपनी अस्मिता की ओर सब सचेत हों
किन्तु राष्ट्र के लिए जो स्वर हो वे समवेत हों
हो विवेक चरण के नियंत्रक
सम बंध बस इतना

कण कण माँ भारती का पूज्य सब को हो सके
मन में दिव्य दृष्टि लिये सृष्टि भार ढो सके
हो सकें दायित्व के निर्वाहक
स्कंध बस इतना