टूट न जाए डर लगता है
सहमा-सहमा घर लगता है
ऐसी करवट बदली रूत ने
हर मौसम खंजर लगता है
चेहरे को देखूं भी क्या मैं
इंसा है,सुन्दर लगता है
कान न होते दीवारों के
तर्क ज़रा हटकर लगता है
भागम-भाग मची कुछ ऐसी
एक-सा घर -बाहर लगता है
रात-कहानी कहने लगती
जब छत पर बिस्तर लगता है