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उदास दिन / राजीव रंजन

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न जाने आज दिन क्यों इतना उदास है...
अभी-अभी तो भोर हुआ, फिर
साँझ का उसे क्यों इतना इंतजार है।
होकर सवार आया जिन रश्मियों पर
फिर क्यों नहीं आज उस पर एतबार है।
पथरायी आँखों में भींगे-भींगे सपने
मौत की परछाई पर प्राण आज सवार है।
नम है धरती फिर भी जगी-जगी सी प्यास है...
उड़ा रहे ख्वाबों को सूखे पत्तों सा
उन हवाओं से ही मौसम की तकरार है।
दब रहा है आज स्वछंद आकाश
उड़ रहे हैं वो जिनके कंधों पर भार है।
नाच रही है रोशनी आज अंधरों में
रात का देखो कैसे सज रहा दरबार है।
सूरज थका सा, चाँद से ही अब आस है।