Last modified on 9 नवम्बर 2017, at 14:42

सपनों का एक गांव / राजीव रंजन

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 9 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन |अनुवादक= |संग्रह=पिघल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे सपनों का एक गाँव हो।
बरगद सा जीवन में मेरे छाँव हो।
चंचल जिंदगी का बस वहीं ठाँव हो।
मेरे गाँव की मिट्टी ऐसी जिसमें,
खिलता चहुँओर प्रेम का फूल हो।
अहिल्या को तारने वाली
श्री राम के चरणों की धूल हो।
गाँव में सबका ऐसा घर हो।
माँ के आँचल सा एक ही छत हो।
और उसमें भरा सिर्फ प्यार हो।
बीच में नफरत की न कोई दीवार हो।
मौसम पर सबका एक ही सा अधिकार हो।
पतझड़ में न मुरझाए कोई कली,
हर उपवन में छाया बस बसंत-बहार हो।
मलयानिल के झोकें का यहाँ न व्यापार हो।
सुरभि से गाँव का हर घर गुलजार हो।
हर-आँगन में पावन गंगा की
निर्मल-अविरल जलधार हो।
भागीरथ न अब और लाचार हो।
हर जीवन की गंगा का उद्धार हो।
धर-धर में भागीरथ का अवतार हो।
जिंदगी में न किसी के अंधेरा हो।
जीवन में खुशियों का सबेरा हो।
हर शाख पर सोन चिड़िया का बसेरा हो।
मेरे गाँव की मिट्टी ऐसी जिसमें,
खिलता चहुँओर प्रेम का फूल हो।
अहिल्या को तारने वाली
श्री राम के चरणों की धूल हो।