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फिर छाई है कारी बदरिया / अनीता सिंह
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फिर छाई है कारी बदरिया
ओ पावस! बिन बरसे ना जा।
दूर क्षितिज पर आँख गड़ाये
फिर से बादल लौट न जाये
रह जाये न आस अधूरी
सोच-सोच हियरा घबराये।
चमक उठी घन बीच बिजुरिया
ओ पावस! बिन बरसे ना जा।
किरणें आई थीं मुस्काती
मौसम ने भेजी थी पाती
लाज निगोड़ी राह खड़ी थी
बोलो, फिर मैं कैसे आती
छलक उठी फिर नयन गगरिया
ओ पावस! बिन बरसे ना जा।
पनिहारिन की गगरी खाली
बगिया कैसे सींचे माली
अमराई में खाली झूले
अब तो आ जाओ री आली
राह निहारूँ चढ़े अटरिया
ओ पावस! बिन बरसे ना जा।