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झर रही है ओस निर्मल / अनीता सिंह
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झर रही है ओस निर्मल
रात का भीगा है आँचल।
दूब के हरियल दलों पर
नाचती है चाँदनी।
छन-छनन-छन पवन-
मन में, घोलती है रागिनी।
प्रेम के आवेग से है
काँपता, तालाब का जल।
खिलखिलाती है कुमुदनी
चाँदनी की परस पा कर।
ओस कण हैं झिलमिलाते
रजत किरणों में नहाकर।
पंखुरी में सो रही है
कमल की, कलियाँ सुकोमल।
मंद-सा झोंका पवन का
तार झंकृत कर गया
ये शरद का चांद
चारों ओर जीवन भर गया।
क्षीर-सागर में मुदित-मन
तैरते हैं, शुभ्र बादल।