Last modified on 10 नवम्बर 2017, at 13:14

दर्द भरे सपने जैसा था / रंजन कुमार झा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:14, 10 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजन कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हें देखना इस जीवन के
दर्द भरे सपने जैसा था

 तुमको पाने -अपनाने के
 पंथ सभी पथरीले पाए
 जिस उपवन में खिले कुसुम तुम
 उसमें झाड़ कंटीले पाए
 हाथ बढ़ाया ज्योंही मैंने
 कांटो के चुभने जैसा था

 जिस नभ के तुम चांद बने थे
 उसमें वह विस्तार नहीं था
 शीतलता का नाममात्र भी
 संस्कार -व्यवहार नहीं था
 मैंने मुख जो उधर किया तो
 दाह मिली ,तपने जैसा था

जब खुद को मैं सँभालने की
कोशिश में सब भूल रहा था
तब भी तेरी यादों के ही
गलफांसे में झूल रहा था
अधर खुले जब व्यथा बाँटने
 तो केवल कपने जैसा था