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ग्यारह सितम्बर और अन्य कविताएँ / कुमार मुकुल
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सुबह
चांदनी की रहस्यमयी परतों को दरकाती सुबह हो रही है जगो और पांवों में पहन लो धूल मिट्टी ओस और दौड़ो देखो-स्मृतियों में कोई हरसिंगार अब भी हरा होगा पूरी रात जग कर थक गया होगा संभालो उसे-उसकी गंध को संभालो जगो कि कुत्ते सो रहे हैं अभी और पक्षी खोल रहे हैं दिशाओं के द्वार जगो और बच्चों के स्वप्नों में प्रवेश कर जाओ।