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एक और किन्तु / रामनरेश पाठक

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एक और किन्तु की प्रत्याशा में
डूबी हुई मुद्रायें
पार्श्व में खड़ी हैं और
नीलगंगा से उतरते हुए उद्बोधन
गंगा के कछार पर लहर धेनुओं से
अमृत की करती हैं याचनाएँ

किसी नागरिक शब्दावली और
नीली प्रतिज्ञाओं की पट्टिकाएं
आवेष्टित होती जाती हैं
गोपनीय मन्त्रणाओं से/में

कीर्तिमान एकांतिकता भोगते हुए कबंध और
अपनी ही आर्ष नपुंसकता में अन्वेषित शिखंडी
पूरी संरचना में जड़ित हो गए हैं और
यातनाओं की ऋचाएँ गढ़ने का सुख भोगते हैं

प्रवाहमान लोकोक्तियां और
शिशु यंत्रणाओं के खरोच
अपनी मांसलता पर उकेरे
एक भीड़ /कुछ वाद/कुछ दल/गुट
दरवाज़ों पर भिक्षाटन में रत हैं

किशोर उद्घोषों का भ्रूण हथेलियों पर लिए
मांगलिक विवेचन का नाटक करती हुई एक पीढ़ी
अपनी डूबी हुई गहराइयों के बीच
देश के लिए उच्चारती है एक प्रबंध और
खंडित लैंगिकता के चोर दरवाजे से
पीती है अपनी सुविधाओं के स्खलन

एक रक्तिम शिला के ऊर्घ्व स्तंभन से
निस्सरित प्रवाहों को
विपरीत रति की प्रक्रिया में भोगते हुए
उन्होंने अपने को स्थापित कर लिया है और
योनिद्वारों से झांकती हुई सर्पिनियाँ
उनकी वापसी की प्रतीक्षा में हैं
क्रांति की दुर्बोधता में व्यस्त
वे अभी भी
मात्र एक मत्स्यगंधा से पूछते हैं
अपने अंतर्ध्यानित जननेद्रिय के गणित की व्यवस्था
और वह समय खंडों के बुदबुदों से
उन्हें लौटा देती है उनके
अर्जित पूर्वजों की अपरिमेय क्लीवता

लौह प्रतिमूर्तियों को आलिंगन में आबद्ध किए
एक चक्षुहीन धृतराष्ट्रीय चेष्टा/प्रयत्न/आतप
संभावना की समाप्ति पर भी
धुरीहीन प्रदर्शन का करता है केवल अभिनय
और अकर्मण्य बर्बरीक उच्चारता है
आधारहीन खंडित निर्णय

एक लाक्षागृह में सिमट कर केंद्रित हो गई है
सत्ता की छद्मवेषी कापालिकी प्रज्ञा परिहास प्रत्यया
और सुरंगे विनिमय करती हैं
नरमेध के लोकप्रिय सूत्र
एक रिक्त संदर्भ में
भीड़ भोगती है संत्रास की जिज्ञासा और
विकल्पों के माध्यम से
छुटती जाती है ऐतिहासिक संदर्भों से

शब्दों का मेरूदंड रिसता है और
वक्तृतायें आसन्न संबंधों के स्वार्थों में डूब गई हैं